Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इक मौन तुम्हारा

 

इक मौन तुम्हारा
इक मौन हमारा
दो नैनो की चंचल बतिया
खोल गयी प्रणय भेद सारा

 

इक मुस्कान तुम्हारी
इक मुस्कान हमारी
पतझड़ का मौसम है
पर खिल गयी
दिल की बगिया सारी

 

इक खवाब तुम्हारा
इक खवाब हमारा
इस मीठे एहसास की चाँदनी से
धूल गया रात का अंधकार सारा

 

इक संकेत तुम्हारा
इक संकेत हमारा
इक खुशबू के झोंके ने
मेरे उदास पलो को सवारा

 

इक मौन सा निमंत्रण तुमहरा
इक मौन सा निमंत्रण हमारा
तुम सागर बन के यदि
बाहें फैलाओ
मैं हूँ तेज नदी की धारा

 

इक जीवन तुम्हारा
इक जीवन हमारा
राहें हो जाएंगी जुदा जुदा
पर साथ रहेंगा
यादों का कारवां प्यारा

 


.............................. अंजु

 

 

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