Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नैनो के कंवल

 

तेरे दो खूबसूरत नैनो के कंवल
जैसे हो कोई मदहोश गजल
और उसपे कजरे की धार
दिल की सुनी वीणा पे
छिड़ गए हो अनगणित गीतो के तार

 

 

तेरे जलते हुए दो दियो में
बोलती हुई उम्मीद की भाषा
जैसे समझा रही हो
ज़िंदगी की परिभाषा

 

 

तेरे इन आंखो के गहरे समुन्द्र में
उठते गिरते चंचल भावो के हिलोरे
जैसे फैलाये हो बाहें खुशबू के फेरे
यह मादक नशीले रेशम के डोरे

 

 

कैसे बांधू इनके सौंदर्य को
मैं शब्दो के जाल में
कोई मिसाल देखी नहीं
जो है तेरे इस जमाल में
.......................................

अंजू

 

 

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