तुम मुझे मधुर भाव दो
मैं तुम्हें गीत
कानो में जो रस घोले
ऐसा मधुर संगीत
तुम मुझे बंधन दो
मैं तुम्हें स्वीकृती
ज्योतिर्मय हो अपनी प्रीति
तुम मुझे आकाश दो
मैं तुम्हें इंदरधनुष
चारो दिशाओ में फैले
प्रेम के अंश
तुम मुझे मौन दो
मैं तुम्हें अभिव्यकती
प्रेम की हो शुरू
नई रीति
तुम बनो गगन के चाँद
मैं धरा की धूल
फिर भी हो मिलन
हो जग में प्रेम की ही जीत
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अंजु
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