Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं...........

 
मैं........... 
मैं दावा नहीं करता की सूरज हूँ मैं,
वो तो जलता है दूसरो को रौशनी देते हुए
ना ही यह कहूँगा की चाँद हूँ मैं,
वो तो आता है अँधेरे साथ लेते हुए
मैं एक फूल होने का भी शौंक नहीं रखता,
जो सुबह खिलकर शाम को मुरझा जाता है
मैं एक साया बनने का रूतबा नहीं रखता,
जो घने अँधेरे में साथ छोड़ जाता है
मैं फूलो की महक हूँ, सितारों की चमक हूँ
सबके दिल में छा जाऊं, मैं एक ऐसी धमक हूँ
सूरज सा तेज है मुझ में, चाँद सी sheetalta है
मेरा ही हो जाता है जो भी मुझसे मिलता है
मेरा ही हो जाता है जो भी मुझसे मिलता hai
 

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