रेखा एक अतृप्तता की, युगो’ के पश्चात भी, वैम्नस्यता और पराभव के भावो’ के समान, शाम के धुन्धलके सायो’ की तरह, और चील के पन्खो’ के जैसे, हर पल , हर वक्त, अकेले मे’, मुझे छॊटा बना देती है, मेरे सामने
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रेखा एक अतृप्तता की, युगो’ के पश्चात भी, वैम्नस्यता और पराभव के भावो’ के समान, शाम के धुन्धलके सायो’ की तरह, और चील के पन्खो’ के जैसे, हर पल , हर वक्त, अकेले मे’, मुझे छॊटा बना देती है, मेरे सामने
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