Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे पिताजी अनोखे हैं

 
मेरे पिताजी अनोखे हैं

बचनप से आज तक मैने... मेरे पिता में कुछ बातें अनोखी ही पाई जैसे हमारे परीक्षा परिणाम पर सदा अनोखी प्रतिक्रिया देना...  कम अंक आने पर शाबाशी देना परिणाम के विषय में कभी दुबारा बात नही करना आदि । पढाते समय गणित के सवाल हो या हिन्दी के दोहों का अर्थ पहले धैय्र पूर्वक बात सुनना फिर पिछले पाठ के बारे में पहले हमसे जानकारी लेना....हमारे दौस्तों में पूरी रूची लेना..... मेरे साथ की एक लडकी अकसर मुझे घमकी देती की वह कुऐ में कूद कर आत्म हत्या कर लेगी ओर मेरा नाम सब को कहेगी.... मैं उदास परेशान और उसका प्रतिदिन का नियम एक दिन पिताजी को यह बात बताई... सारी बात सुन कर उन्होने मुझ से कहा आज जाकर उसे कहना चार कुऐ और भी है..ं जहाॅ तुम गिर सकती हैं यदि जानना चाहती हैं तो मुझे बताना बस फिर क्या था समस्या खतम.......अकसर स्कूल में पढाने वाली शिक्षिका पिताजी को नाम से जानती ओर उसका लाभ मिलने के बदले नुकसान यह होता, कि छोटी सी भूल पर बडी सजा मिलती क्यों की यह पिताजी का इच्छा होती। व्याकरण की काॅपी सदा लाल रहती... हमें त्योहार पर नई पुस्तकंे लाकर देने वाले मेरे पापा अनोखे ही हैं। ंभोजन के नये प्रयोग हमेशा पिताजी से ही सीखे भोजन स्वादिष्ट हो या कुछ कमी वाला सदा एक ही भाव से खाओं, शिकायत मत करो। कल अच्छा खा लेना किसी के घर पर खुशी अथवा शोक हो तो जरूर जाओ,ं वर्ना काम से काम रखो जीवन बहुत छोटा हैं। काम बहुत है इस सिद्वान्त के सहारे आगे बढने का पाठ पढाया मेंरे अनोखे पिताजी ने। आज में अपने पिता के पद चिन्हों पर चलकर आगे बढते जाने का स्वपन लिये जी रही हुं।
    घने पेड की शितल छाया से हैं मेरे पापा
   ये बातें आज अजीब लग सकती हैं क्यो कि आज पापा बदल गये है ंनये जमाने के पापा (सभी नहीं)जिम्मेदार शुभचिन्तक संवेदनशील और दोस्ताना रूख रखने वाले होते जा रहे हैं न्यु ऐज डैडी’8 बच्चों की शिक्षा से खेलकूद तक के बारे में चर्चा करते हैं उनकी समस्यायें सुनते हैं कंमाडर नही साथी होते जा रहें हैं और वे पढने और बढने वाले बच्चों की समस्याओं को सुनते और समझने लगे हैं।
जहाॅ पुराने जमाने के बाबुजी के साथ मामुली संवाद भी मां के माघ्यम से होते थे वह अपने बच्चों पर अपनी राय थोपते थे वैसे तो हर पिता के पास जीवन का लम्बा अनुभव होता हैं संतान को इस अनुभव का लाभ ही उठाना चाहिये...बात चाहे नये जमाने के पिता की हो या पुराने जमाने के पिता की मेरी नजर में पिता की एक गरीमा अवश्य होनी चाहिये। संतान चाहे जीवन में किसी भी ऊॅचाई पर पहँुच जाये याद रखें की पिता तो पिता ही हैं। आपको यह अधिकर नही मिल जाता की आप ऊँची आवाज में बात करें अकसर युवा बच्चे अपनी असफलता को पिता  पर थोपने का प्रयास करते हैं और पिता यह घैर्य पूर्वक सुन लेते हैं। इसका अर्थ यह कदापी नही हें कि बच्चे सही हैं।

एक बार विचार करके देखिये की जितनी क्षमताये आपके पिता में आज हैं इस उम्र में ं उतनी क्षमता आप में होगी?, उस उम्र में आने तक ,...आप आज अपने पिता से जितनी उम्मीदें रखते हैं यह जानते हुये भी की यह पूरी नही कर सकते नीचा दिखाने के प्रयास में यह मत भूलों की आप गलत संस्कार अगली पीठी को अनजाने में विरासत में दे रहे हंै ंऔर अपनी छवि बिगाड रहे हैं सो अलग।
अकसर छोटे शहरो से बडे शहरों में पढने आने वाले बच्चे अपने खर्चों में कटोती नही करते  और पिता उनका खर्च संम्पत्ती बेच कर उठा तो लेते हैं.. पर वही बच्चे बडे हो कर उन्हे ही दोषी ठहराते हैं... घ्यान रहे अपनी महत्वकांक्षाओं का बोझ पिता पर इतना भी न डालंे की वह उठा ही न पायंे। अपने पिता को मार्ग दर्शक माने, संरक्षक मानं,े एक ऐसा घना पेड जिसकी शीतल छावं में आप थक कर आराम कर सके...और यह सब तभी होगा, जब आप अपने पिता का दिल से सम्मान करेगे।
प्रेषक-- प्रभा पारीक जयपुर

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