नहीं चाहिए व्हीलचेयर
पिंकी की दादी मां गांव में रहती थीं। पिंकी और
उसका छोटा भाई पिंटू कभी गांव नहीं गए थे, ना दादी
से मिले थे।
परंतु आज उसके पापा बहुत परेशान थे। गांव से खबर
आई थी कि उनकी मां यानी पिंकी की दादी गिर पड़ी
थी। उनके पैर की टूट गई थी। उन्हें अस्पताल में भर्ती
कराया गया था।
पिंकी के पापा बोले, "हमें तुरंत गांव के लिए चलना
चाहिए। वहां बड़े भैया अकेले हैं। मां की देखभाल कैसे
होगी?"
पिंकी की मम्मी बोली, "सुनो जी, हम दिल्ली से एक
व्हीलचेयर लेते चलते हैं। मांजी को व्हीलचेयर होने से
आराम हो जाएगा।"
"तुम ठीक कहती हो।" पिंकी के पापा ने जवाब दिया।
फटाफट सामान पैक किया गया और वे गांव की ओर
चल पड़े। रास्ते में पिंकी के पापा ने व्हीलचेयर खरीद
ली। छोटी सी पिंकी को व्हीलचेयर बहुत मजेदार सी
लगा। वह मचलने लगी, "यह तो मेरी साइकिल जैसी है।
मैं इस पर बैठूंगी।"
"नहीं बेटा, यह खेलने की चीज नहीं है। तुम्हारी दादी मां
को चोट लग गई है। इसलिए उनके लिए लेकर जा रहे
हैं " समझाते हुए पिंकी के पापा ने व्हीलचेयर को
डिक्की में डाला और फटाफट आगे चल पड़े।
शाम होते-होते वे गांव पहुंच गए। तब तक पिंकी के
ताऊ जी पिंकी की दादी को अस्पताल से घर ले आए
थे। उनके पैर पर प्लास्टर चढ़ा था। अपने बच्चों को
देखकर उनके चेहरे पर दुख के बावजूद सुख के मुस्कान
फैल गई। पिंकी को तो उन्होंने खूब प्यार किया। पिंकी
ने दादी से कहा, "दादी, हम आपके लिए बैठकर चलने
वाली साइकिल लाए हैं।"
जब उसने व्हीलचेयर को साइकिल बोला, तो सब खूब
हंसे। पिंकी के ताऊ जी की भी एक छोटी सी लड़की थी,
नेहा। फटाफट पिंकी और नेहा की दोस्ती हो गई।
ऐसे ही दो-चार दिन गुजरे। डॉक्टर को दिखाने के लिए
पिंकी की दादी को लेकर जाना था, तो उसके पापा कार
में बैठाकर ले गए। घर में व्हीलचेयर खाली पड़ी थी।
उसे देख कर फिर पिंकी का मन मचलने लगा बैठकर
खेलने के लिए। उसने अपने मन की बात नेहा को
बताई। नेहा बोली, "बुद्धू, इस पर खेला नहीं जाता। जो
इस पर बैठता है, वह बहुत परेशान होता है। दादी तो
कहती हैं, भगवान करे, किसी को भी इस पर बैठने का
मौका ना मिले।"
"नहीं दीदी, मेरा मन कर रहा है। मैं देखना चाहती हूं,
इसमें कैसा लगता है बैठकर।" पिंकी मचलकर बोली।
उसके भाई पिंटू ने भी दीदी का समर्थन किया। कुछ
सोचकर नेहा बोली, "ठीक है, मैं तुम्हें इस पर बैठाकर
थोड़ी देर घुमा देती हूं। तुम वैसे ही बैठना, जैसे दादी
बैठती हैं। इस पर से तुम्हें उठना नहीं है और पैर
लटकाकर बैठे रहना है। कुछ भी हो जाए, तुम उठ नहीं
सकती। बोलो, मानती हो।"
व्हीलचेयर पर बैठने की चाह में पिंकी ने फटाफट शर्त
मान ली। अब तीनों बच्चे व्हीलचेयर को लेकर घर से
बाहर बाग में आ गए। पिंकी बड़े शान से व्हील चेयर पर
बैठी। नेहा उसे दादी की तरह उस पर घुमाने लगी।
पिंकी को बड़ा मजा आ रहा था। घूमते-घूमते वे आम के
पेड़ के पास पहुंचे पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता था। पिंटू
को छत्ता तो दिखा नहीं। आम की लालच में उसने एक
पत्थर फेंका, जो छत्ते पर लगा। देखते-देखते सैकड़ों
मधुमक्खियां तीनों बच्चों की तरफ लपकीं।
" पिंकी भाग।" मधुमक्खी को देखकर नेहा घर के तरफ
भागते हुए चिल्लाई। उसे भागते देख पिंटू भी उसके
पीछे भाग पड़ा। पर पिंकी व्हीलचेयर से नहीं उठी। उसने
तो नेहा को प्रॉमिस किया था कि वह कुछ भी हो जाए,
व्हीलचेयर से नहीं उठेगी। तब तक मधुमक्खियों ने
हमला कर दिया। अब पिंकी चीखने लगी।
उसकी चीख सुनकर घर से उसकी ताई निकलीं।
मधुमक्खी के हमले को देख वह सब कुछ समझ गईं।
वह फटाफट मोटी चादर लेकर दौड़ते हुए पिंकी के पास
पहुंचीं और उसे ढक दिया। किसी तरह वह व्हीलचेयर
को लेकर घर के अंदर आ गईं।
मधुमक्खियों ने उन्हें भी काट लिया था। फटाफट देसी
तरीके से दवा बनाकर पिंकी और उसकी ताई के लगाई
गई । तब तक पिंकी के पापा हॉस्पिटल से लौट आए
थे। जब उन्हें सारी बात पता चली, तो वह बहुत गुस्सा
हुए।
पर पिंकी रोते-रोते दादी के पास पहुंची और बोली, "सॉरी
दादी मां। मुझे लग रहा था, व्हीलचेयर पर बैठना बहुत
मजे की चीज है। पर यह तो बहुत गंदी चीज है आप
फटाफट ठीक हो जाओ। फिर हम लोग इसे फेंक देंगे।"
भोली पिंकी के मुंह से यह सुनकर सबके चेहरे पर हंसी
आ गई। पिंकी की समझ में नहीं आया कि लोग क्यों
हंसे हैं, पर सबको हंसते देख वह भी हंसने लगी।
प्रेषक प्रभा पारीक
,भरूच गुजरात
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY