आशा ओर उम्मीद
महिला चिकित्सक डाॅ रश्मि अकसर अपने अंदर लगे स्क्रिन पर मरीजों की संख्या और
रिशप्शन पर हो रही गहमागहमी का मुआयना करती रहती थी। देख रहीं थी कि दो
ग्रामीण सी दिखने वाली महिलायें बार बार रिसप्शनिस्ट से अंदर पहले भेजे जाने का
तकादा कर रही थी। मरीजों को देखते हुये भी उन्होंने करीब दो तीन बार उनकी इस
उतकंठा को देखा और रिसप्शनिस्ट को कहा कि उनकी इस जल्दी का कारण पूछे ।
अकसर डाक्टर रश्मि गांव से आने वाले मरीजों की बस का समय होने का अथवा कोई
गंभीर कारण बताने पर पहले बुला लिया करती थी। रिसप्शनिस्ट ने स्वयं अंदर आकर
बताया कि उन महिलाओं से आप एक बार मिल लें । डाॅक्टर रश्मि ने देखा उनमें से
एक महिला डरी डरी सी स्वयं में सिमटी हुई रोने से सूजी हुई आखें मायूस सा चैहरा
लिये चुपचाप शुन्य में निहार रही थी। साथ आई महिला ने कारण तो नहीं बताया।
बस हाथ जोड़कर दुगनी फीस ले लेने का आग्रह करती रही ।
डाक्टर रश्मि के लिये ये सब भी नया नहीं था। पर उन महिलाओं के आग्रह में कुछ
विशेष बात लगी और डाक्टर रश्मि ने उन्हें एक दो मरीजों के बाद जल्दी अंदर भेज
देने के लिये कहा। अनुभव कहता था कि हमारे अपने हमें कभी दर्द नहीं देते, दर्द तो
हमें वो देते हैं जिन्हें हम अपना समझने की भूल कर बैठते हैं शायद इस महिला के
साथ भी एैसा ही कुछ रहा हो। बुलाया जाने पर साथ आई युवती ने चैन की संास ली
। अंदर आकर वह इतना ही कह पाई कि इसका मासिक एक महिना ऊपर चढा गया
है। उसने व्यग्रता से दूसरी महिला जो दुःखी दिख रही थी। उससे कहा ’’तू अंदर चली
जा’’ पर डाक्टर के कहे बिना वो महिला अंदर जा कर कैसे लेट सकती थी। डाॅ के
कहने पर सहमी सी युवती चुप-चाप लेट गयी । जांच की तैयारी के पष्चात डाक्टर
रश्मि ने महसूस किया महिला का शरीर थर थर कांप रहा था।
जांच करके जब डाक्टर रश्मि बाहर आई तो दोनों महिलायें हाथ बांधे प्रार्थना कर रही
थीं। डाक्टर रश्मि को देखकर वे व्यग्रता से उनकी बात सुनने के लिये तत्पर नजर
आईं। डाक्टर रश्मि ने बताया इसके गर्भ में शिशु नहीं है। दूसरी महिला ने करीब करीब
रोते हुये कहा ’’डाक्टर साहिब आप एक बार फिर देख लें ’’ डाॅ रश्मि तो पहली जांच से
संतुष्ट थीं पर फिर भी उसके आग्रह पर उन्होने फिर से जांच कर ली। इस बार डाॅ
रश्मि हाथ धो कर अपनी कुर्सी पर आकर बैठी और उनके उदास वीरान से चैहरो को
देखक कर उनके लिए ये सामान्य बात लगी। डाक्टर रश्मि अभ्यस्त थी इस तरह की
प्रतिक्रियाओं की,वे कुछ समझाने के लिये शब्द टटोल ही रहीं थी। डाॅ रश्मि के हिसाब
से इतना निराश होने की आवश्यक्ता नहीं थी उम्र अभी कम थी सारी संभावनाये
अभी बाकी थी।
डाॅ ने लिखने के लिये पैन उठाया ही था कि साथ आई महिला ने पूछा फीस कितनी
देनी है। डाक्टर ने गरदन उठाये बिना कहा ’’मैं कुछ दवा लिख देती हुं।’’ महिला ने
पुनः रूखा सा प्रश्न किया ’’फीस कितनी देनी है’’? कहते हुये साडी मे बंाधा 500 रूपै का
नोट टेबल पर रख कर देानों महिलायें अपने स्थान से खड़ी हो गई, दौनो एक दूसरे के
आॅसु पौछ रहीं थी ’’डाक्टरनी जी आप एक बार फिर दख्ेा लेती तो आपकी दया
होती’’ उस महिला का यह आग्रह रश्मि को अंदर तक झकझोर गया । क्यों कि वह बार
बार जोर दे रही थी कि इसे एक महिना चढा हुआ है। झूठे इंसार की ऊँची आवाज सच्चे
इंसान को खामोश कर देती है, लेकिन सच्चे इंसान की खामोशी सच्चे इंसान को हिला
देती है। इस बार मजबुर होने की बारी डाक्टर की थी। डाक्टर की गहरी नजरों का
सामना करती दूसरी महिला ने कहा आप डॉक्टर के रूप में भगवान का रूप हैं,ये मेरी
देवरानी है ’’आज इसके पति की तेरहवीं का दिन है, मैं बडी आशा से आपके पास इसे
लाई हुं,। चिन्तित हूं अब मेरे परिवार के भविष्य का क्या होगा । मंै धर जाकर हमारे
सास ससुर को क्या कहुं। डाॅ रश्मि को जैसे झटका लगा .....
स्तब्ध डाॅ रश्मि ने दोनो को बैठ जाने को कहा, महिला को पुन अंदर जाने को कहा,
और डाॅ ने उस दिन उसके गर्भ परीक्षण इस तरह से किया जैसे वो अपनी खोई मणी
तलाश कर रही हों।
उस दिन निराश डाॅ रश्मि ने महसूस किया कि काश उसके पास एैसा विज्ञान
विकसित हो गया होता कि वह अभी इसेमें इसके पति के अंश को प्रतिष्ठित कर
परिवार को खुशी दे पाती। संभवतः इसके जीवन को नर्क बनने से बचाने हेतु इसके
मातृत्व की और अग्रसर करके भेज पाती । बिना फीस लिये उस दिन डाॅक्टर रश्मि ने
अश्रु पूरीत आॅखों से उन दौनो को विदा किया। डाक्टर के जीवन में नित नये अुनभवों
से सामना होता है। पर इस झकझोर देने वाली घटना के बाद डाॅ रश्मि बहुत समय
तक स्वयं को संयत नहीं कर पाई। रह रह कर उस महिला का चैहरा ’अपने जीवन के
लिये प्रश्न करता क्या खेत में डाले सारे बीज फलते फूलते हैं।
प्रभा पारीक
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