Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

निराश मत होना तुम

 

अरे! यह दिन का आना जाना तो लगा रहता है
पर निराश मत हिना तुम
रात को टिमटिमाता दिया जलाकर सूर्य का इंतज़ार करना
क्योंकि अँधेरा तो खुद प्रकाश से दर्य है उसकी आहात सुनकर सर पे
पाँव रखकर भगता है।
इस बीच अपनी मुस्कराहट से दिए में तेल भरते रहना
देखना!आंखों के मोती इसे बुझा न दें
अपनी हिम्मत से इसे संजोय रखना
रात के इस तीसरे पहर
उठ बैठना समेटकर इस दीपक की आग
अपने सीने में
ताकि जब ब्रह्मा मुहूर्त में सूर्य की पहली किरण तुम पर पड़े
इसी आग में ये सोना कंचन बन कर निकले
और आभामंडल फैले इसका इतनी दूर दूर तक
की सूर्य देवता भी तुम्हे
झुक झुककर प्रणाम करें!

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ