Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कब तक ?

 

बीजापुर के उस छोटे से रेलवे स्टेशन पर उतरते वक्त अनुष्का और भव्या ने सोचाथा " निश्चय ही हमारा यहाँ गर्मजोशी से स्वागत होगा|" लेकिन स्टेशन से निकलते ही सारेअरमान काँच के टुकड़ों की तरह बिखर गये| दूर-दूर तक कोई दिखाई न पड़ रहा था| पहले सोचा कहीं गलत स्टेशन पर तो नहीं उतर गये फिर आस -पास तलाशने पर एक कोने में अनमना-सा बैठा कोई दिखा|
"ये बीजापुर ही है न?"
कोई उतर न मिला तो निष्कर्ष निकाला गया कि शायद बोल-सुन नहीं सकता, गूंगाहोगा|फिर भी एक और कोशिश करनेमें क्या हर्ज़ है?
"यहाँ कोई होटल या धर्मशाला है?"
अजनबी बोला तो नहीं मगरउत्तर दिशा की ओर संकेत अवश्य किया|ज्यों ही उस ओर नज़रें दौड़ाई दो लोग आते दिखाई पड़े, मालूम हुआकि वह ग्राम-सरपंच सेवाराम और उनके मुंशी गिरधारी लाल हैं| मुंशी महोदय ने अपना ऐनक कुछठीककिया और पूछा-"सरपंच जी नेबतलाया कि आप दोनों को डीएम साहब ने हमारे गाँव भेजा है?"
“जी, हम दोनों ही आपके गाँव का सर्वे करेंगी|"
परिचय हुआ, बातें हुईंऔर साथ हीआग्रह किया गयाकिसर्वे पूरा होने तक भव्या और अनुष्का, सरपंच जी के यहाँ ही रुकेंगी| सोचने योग्य बात भी है, अगर बड़े बाबू के मेहमानों को कोई असुविधा हुई तोगाँव क़स्बा कैसे बनेगा? घर पहुँचते ही सरपंच जी ने अपनी धर्मपत्नी, छोटे पुत्र एवं परिवार के अन्य सदस्यों से रूबरू कराया| पहली मुलाक़ात में तो यहाँ के लोग अच्छे हीजान पड़े|
शाम को दस्तरख्वान बिछाया गया तो सरपंच जी के बड़े साहबजादे भी आ पहुँचे| सेवाराम जी अपने साहबजादे से कुछ उखड़े-उखड़े दिखेमानो लाखों का नुकसान कर दिया हो उनके वारिस ने|खैर! उन्हें तो रविकान्त के रूप में अपने स्कूल के दिनों का सहपाठी मिल गया | बचपन की यादों की बयार बहने लगी साथ ही एक ऐसे साथी कीयाद भी आयी जो पढ़ाई बीच में ही छोड़कर चला गया था| अनुष्का तपाक से बोली-
" वह भी तो इसी गाँव का था न? और तो और तुम दोनों साथ ही रहतेथे? फिर ऐसा क्या हुआ जो वह9वीं में ही कहीं चला गया?"
जवाब में सिर्फ मौन मिला| इसी तरह दिन बीतते गये और रिपोर्ट बनती गयी|
आज गाँव में बहुत बड़ा मेला लगा है| अब शहर में तो मेले होते नहीं तो क्यों नबहती गंगा में हाथ धो ही लिये जायें| इस विचार के साथ मेले की ओर कूच किया गया| मेले में बहुत सुंदर-सुंदर चीज़ें थी-लकड़ी पर नक्काशी किये हुए हाथी,घोड़े, मोर आदि| मिट्टी के बर्तन, खिलौने, फूलदान एवं मूर्तियाँ | नट, जादूगर, लोहे का सामान, पीतल की मूर्तियाँ; मिठाईयों, चूड़ियों और फूलों से सजी दुकानें...और भी बहुत कुछ|
अभी मेले के रंग में पूरी तरह डूबे भी नहीं थे कि कहीं से शोर उभरने लगाऔर देखते ही देखते कुछ लोग एक आदमी केपीछे-पीछे भागते हुए वहीं आ पहुँचे| सहसा वह व्यक्ति गिर पड़ा, उसके हाथ में कुछ था जिसे उसने फ़ौरन ही जेब में छिपा लिया और लोग उस पर ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाने लगे| यह देख अनुष्का और भव्या ने उसे बचाने की कोशिश में मामला रफ़ा-दफ़ा करने कि बात कही| लेकिन वहाँ सुनने वाला कौन था? जन-आक्रोश में भी भला कोई सुनता है फिर जैसे-तैसे दरोगा जी के आने कीख़बर फैलाई गयी,तब कहीं जाकर उस बेचारे कीजान बचाई जा सकी|लेकिन अब तक उसे काफी चोटें आ चुकी थीं इसीलिए फ़ौरन अस्पताल ले जाने का प्रबंध किया गया| प्राथमिक उपचार देने के लिये ज्यों ही भव्या ने उसे पलटातो यह जाना कि वह और कोई नहीं बल्कि वही गूंगा-बहरा है, जिससे वह दोनों स्टेशन पर मिलीथीं| आस-पास खड़े लोगों में कुछ कानाफूसी हुई कि तभी एक महात्मन् बोले उठे-
"राम! राम!! राम!!!.....घोर पाप! अशुद्ध!"
यह सुन ऐसा लगा जैसे वो महात्मन् उस व्यक्ति पर हों रहे अत्यचार परबोले हो मगरऐसा था नहीं, उनका तो कुछ और ही तात्पर्य था| कथनी का भेद खुलता इससे पहले यह भेद खुल गया कि वह वही मोहन है जो अपनी पढ़ाईबीच में छोड़कर आ गया था|खैर इलाज भी हुआ और कुछ वक़्त बाद वह स्वस्थभी हो गया| जब अनुष्का और भव्या उससे मिलने पहुँची तब वह अपनी फटी ज़ेबों को टटोल रहा था| अनुष्का ने हाथ आगे बढ़कर कहा -
"इसे ढूँढ रहे हो न?"
झट से उसने हाथ पर रखी मिट्टी से सनी रोटी छीनकरअपने मुँह में डाल ली|दोनों के पैरों तले ज़मीन ख़िसक गयी | सारी पढा़ई, शहर, सर्वे, योजनाएँ...सब कुछ बेवजह और बेकार लगने लगा| "जब एक रोटी तकभी इंसान को चुरानी पड़े तो..." कि तभी उनके पास एक पर्ची आई जिस पर लिखा था-
"मामला इतना सीधा भी नहीं है, जितना दिखाया जा रहा है|- एक शुभचिंतक"
दोनों ही समझ गई थी कि मामले कीजड़ तक पँहुचने के लिये मोहन के भूतकाल में झाँकनाहोगा| सरपंच जी एवं उनके परिवार से पूछताछ कीगयी लेकिन लगभग सब ने किनारा कर लिया बस सरपंच के बड़े बेटे, रविकान्त ने पोस्टमास्टर काका से मिलने की सलाह दी|परन्तु,शायदयह बात सरपंच जी को रासन आईऔर तैशमें आकर, अपने बेटे को एक फटकार लगा बैठे|
फिर भी पोस्टमास्टर काका से मिलने के लिये काफ़िला रवाना हुआ| पहले तो मौन धारण कर, इस विषय से दूर रहने की हिदायत दी गयी|खैर!हौसले की बुलंद दीवार देख सरजू किसान की ओर सारा मामला मोड़ दिया गया|
सरजू के घर का दरवाज़ा खटखटाया गया | एक डरी हुई सी लड़की ने दरवाज़ा खोला, दोनों को देखा फिर रास्ते के दोनों तरफ़ देखा और उन्हें झट से अन्दरबुला लिया|मालूम हुआ कि वह सरजू की छोटी बहन है, सरजू तो शाम तक ही खेत से आएगा|
शाम तक इन्तज़ार के बाद सूरज ढलने के साथ हीसरजू किसान का आगमन हुआ|मोहनकेवर्तमान का पता लगाने के लिए उसके भूतकाल को जानने की अर्ज़ी डाली गयी| कुछ क्षण रुककर सरजूने अतीतकी परतों सेधूल उड़ाई-
“चौधरी ने धोखे से मोहनकेमाता-पिता की जमीन छीन ली थी|जिसे छुड़ाने के लिए मोहन ने 15 साल तक चौधरी के यहाँ बँधुवा मजदूर बनने का काम चुना| एक बार तेज़ बुख़ार के कारण वह 2-3 दिन तक खेत पर नहीं गया| नतीज़ा यह हुआ कि जब वह ठीक होकर वापिस गया तो चौधरी ने उसे काम से निकाल दिया और अपने लठैतोंको हुक्म देकर उसके माँ-बाप को मरवा दिया| जिसकामोहन को बड़ा सदमा लगा और उसका मानसिक सन्तुलन बिगड़ गया|”
“लेकिनयह चौधरी है कौन जिसके विषय में कोई भी कुछ नहीं कहता?“
बमुश्किलसरजू किसान को समझा-बुझाकर, जान की सलामती का ढाढ़स बंधवाया गया तब कहीं जाकर उसनेचौधरी का चित्र कुछ यूं प्रस्तुत किया-
“ चौधरी साहब इस गांव के बड़े जमींदार हैं| उनकेपासकईं एकड़ ज़मीन है जिसे उन्होंने ग़रीब, मजबूर और निम्न वर्ग के लोगों कोमूर्ख बनाकर या जबरन उनसेछीना है| यही नहीं उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ यहाँ एक पत्ता भी नहीं हिलता...”
“अगर चौधरी का इतना दबदबा है तो यहाँ पंचायत, सरपंच..आदि क्यों हैं?”
“मैडम ! सच बात बताएं तो सरपंच जी भी उन्ही का हुकुम बजातेहैं|”
इसके बाद कहने-सुनने को कुछशेष न रह गया था....सब कुछ दूध का दूध और पानी का पानी हो चला था| किस तरह पिछड़े तबके का होना मोहनके परिवार के लिए सज़ा बन गया|दोनों ने जातिवाद के इस पर्दे को बीजापुर ग्रामवासियों की आँखों से हटाने का निर्णय लिया| ह्रदय चौधरी को सबक सिखाने के लिये उसकी धर पकड़ के फ़रमान जारीहुए|उड़ती-उड़ती सी ख़बर आई किचौधरी 2-3 दिन के लिए शहर से बाहर है|
लौटते ही चौधरी के मुखबिरों ने उसके बारे में चल रही जाँच पड़ताल की जानकारी दी|नतीज़तनसरजू किसान को धर दबोचने और मोहन को मौत के घाट उतारने का फ़तवा जारी हो गया| चौधरीके लठैतगाँव भर में मोहन की तलाश में जुट गये|पता लगते ही मोहन को भूमिगत कर दिया गया और उधर सरजू किसान की बहन अपने भाई की जान बचाने की फ़रियाद ले पहुँची|
भव्या बड़े बुलंद होंसले के साथ चौधरी को ललकार तो आयी लेकिन अब यह अन्देशा तो ज़रूर था कि कुछ गड़बड़ जरूर होगी| जो सोचा था वही हुआ भी , चौधरी के लठैत अनुष्का और भव्या को ही उठाकर ले गये और कल होने वाली पंचायत में दोनों को चौधरी से माफ़ी माँगने को कहा गया|अब मरता क्या न करता, हामी तो भर दी लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था|रविकांत ने छुपते-छुपातेदोनों को चौधरी की जेल से मुक्त तो करा दियालेकिनयह चेतावनी भी दीकि
“अगर तुम दोनों को अपनी जान और अपने परिवारों की थोड़ी भी परवाह है, तो शहर लौट जाओ|”
पंचायत में दोनों को न पाकर,हुक्म खिलाफ़ी के जुर्म में बीजापुरके हुक्मरानों की बनायीं खास धारायें लग ही रही थी कि पोस्टमास्टर काका एक ख़त लिए पहुँचते हैं जिसे पंचायत मेंबा-आवाज़े-बुलंद पढ़ा गया-
“ आख़िर कब तक? कब तक आप सब लोग इन जालिम हुक्मरानों के हाथों पिसते रहोगे? कबआप लोग अपने जीवन का मोल समझोगे?कब तक पालतू पशुओं की तरह दूसरों के हाकने पर ही चलोगे? भारत को आज़ाद हुए कितने साल हो गये लेकिन आप लोग कब इस मानसिक गुलामी से आज़ाद होंगे?”
लौटते वक़्त एक बार फिर अनुष्का और भव्या की आँखें बीजापुर स्टेशन को निहार रही थी|मन किश्ती की तरह यादों के समंदर में गोते लगा रहा था कि तभी एक हुज़ूम उस ओर आता दिखाई पड़ता है|वहीं, जहाँ वह अपने स्वागत के सपनोंको संजोये उतरीथीं; आज ढेरों दुआएँ अपने साथ लिए जा रही थीं| इसउमड़ते सैलाबका कारण यह था किचौधरी को अपने किये का बोध हो चला था| जिसकेपश्चताप स्वरूपउसने वह सभी ज़मीन लौटा दी थी जो उसने जबरन हासिल की थी मगर उन लोगों को वह क्या लौटा सकता था जिनसे उनकी ज़िन्दगीहीछीन ली थी?

 

 

Richa Indu

 

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