Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

फ़रिश्ता-ए-सिफ़्त

 

=============

बे-दस्त-ओ-पा के, वो बशर दौमान-गीर था।
इस पर भी त'आज्जुब, कि वो दिल से अमीर था।।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
कल की न थी फिकर, न था शिकवा ही आज से।
बे-नंग-ओ-नाम एक बस, अदना फकीर था।।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
लबरेज़ उसका दिल था, दुआओं से तर-ब-तर।
हिन्दू न मुसलमान वो एक, बे-नजीर था।।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
दर-ब-दर फिरता था वो, बस बांटने खुशियाँ।
मौज-ए-तबस्सुम का वो, एक दस्त-गीर था।।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
"साहिल" हुआ एहसास, फ़रिश्ता-ए-सिफ़्त का।
रौशन-ए-आफताब सा, उसका ज़मीर था।।
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*

 

 

 

*** © *** साहिल मिश्र ***

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ