Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किस तरह ये दिन गुजारा जायेगा।

 

किस तरह ये दिन गुजारा जायेगा।
छोड़ कर जब बेसहारा जायेगा।।

 


ताजपोशी हो गई जालिम की फिर।
अब धड़ों से सर उतारा जायेगा।।

 

 

आपकी गन्दी सियासी चाल से।
मोहतरम; ये मुल्क मारा जायेगा।।

 


खून से होने लगी हैं तरबतर.
सरहदों को कब सुधारा जायेगा।।

 


आज फिर चलने लगी हैं गोलियां
फिर किसी का छिन सहारा जायेगा।।

 

 

जंग, नफरत, खूँ-खराबा जो हुआ.
ज़ख्म सूखा बस उभारा जायेगा।।

 


है सियासत इसमें बस साहिल मियां।
नीयत ईमां का खसारा जायेगा।।

 

 

©साहिल मिश्र

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