किस तरह ये दिन गुजारा जायेगा।
छोड़ कर जब बेसहारा जायेगा।।
ताजपोशी हो गई जालिम की फिर।
अब धड़ों से सर उतारा जायेगा।।
आपकी गन्दी सियासी चाल से।
मोहतरम; ये मुल्क मारा जायेगा।।
खून से होने लगी हैं तरबतर.
सरहदों को कब सुधारा जायेगा।।
आज फिर चलने लगी हैं गोलियां
फिर किसी का छिन सहारा जायेगा।।
जंग, नफरत, खूँ-खराबा जो हुआ.
ज़ख्म सूखा बस उभारा जायेगा।।
है सियासत इसमें बस साहिल मियां।
नीयत ईमां का खसारा जायेगा।।
©साहिल मिश्र
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