मुझको न तो हिन्दू न मुसलमान चाहिए।
इंसान हूँ औ मुझको बस इंसान चाहिए।।
लड़ रहे हैं व्यर्थ क्यूँ मजहब के नाम पर।
ऐसा न मुझे कौम पर बलिदान चाहिए।।
जिसमें लिखा हो रक्त बहाना ही धर्म है।
मुझको न ऐसी गीता न कुरआन चाहिए।।
राह दिखाए हमें जो अमन-औ-चैन का।
मुझको ऐसे अल्लाह और भगवान् चाहिए।।
जो मिलती हो यहाँ मुझे लाशों के ढेर पर।
मुझको न ऐसी ख्याति न सम्मान चाहिए।।
जो कर सके न क्रांति के उदघोष का सृजन।
"साहिल" कलम न ऐसी बेजुबान चाहिए।।
*** © *** साहिल मिश्र ***
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