Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

"मुझको रणभूमि में जाने दो"

 

बजी दुन्दुभि युद्ध की मुझको रणभूमि में जाने दो।
मुझको भी इस धर्मयुद्ध में अब जौहर दिखलाने दो।
पड़े पड़े थी जंग लग गयी जिन अस्त्रों और शस्त्रों पे।
उनको अब पाषाण पे मुझको घिस करके चमकाने दो।
बहुत समय से लहू रगों में पानी बन कर बहता था
अब मेरी नस-नस में इसको लावे सा बह जाने दो।।
शीश झुकाकर जीवन जीना मुझको रास नहीं आता।
अब मुझको सम्मान से बलिवेदी पर शीश चढाने दो।।
वीरों शहीदों की गाथाएं लुप्त पड़ी जो सदियों से।
उन गौरव गाथाओं को मुझे ऊँचे सुर में गाने दो।।
वीर भोग्या वसुंधरा को प्यास लगी है वर्षों से।
रक्त से इन गद्दारों के मुझे इसकी प्यास बुझाने दो।।
कुछ भ्रम है "साहिल" शायद इस अपने मूर्ख पडोसी को।
मुझे जरा उस कायर को उसकी औकात बताने दो।।

 

 

***©*** साहिल मिश्र ***

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ