अगर जो वक़्त रहते हम, संभल जाते तो अच्छा था।
तुम्हीं जैसा जो खुद को हम, बदल पाते तो अच्छा था।।
ना लगती ठोकरें मुझ को, ना होता दर्द फिर दिल में।
तुम्हें ना दिल में अपने हम, बसा पाते तो अच्छा था।।
मोहब्बत शय है नूरानी, नहीं सबको मयस्सर है।
जरा सी बात गर ये हम, समझ पाते तो अच्छा था।।
बड़ी तकलीफ होती है, कभी जब टूटता है दिल।
जो अपने दिल को पत्थर हम, बना पाते तो अच्छा था।।
नहीं काटे से कटते हैं, ये "साहिल" दिन जुदाई के।
जो यादें भी ज़ेहन से हम, मिटा पाते तो अच्छा था।।
*** © *** साहिल मिश्र ***
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