ग़मों को ज़ब्त कर सीने में, मैं मुस्कान रखता हूँ।
हँसी चेहरे पर दिल में दर्द का, तूफ़ान रखता हूँ।।
दिखा गम मेरे चेहरे पर, तो होगा ग़मज़दा वो भी।
तभी तो मैं लबों पे एक, हंसी की खान रखता हूँ।।
ख्वाइश मेरी गम सबके, लेकर बाँट दूं खुशियाँ।
मैं अपने दिल में छोटा सा, यही अरमान रखता हूँ।।
मुझे मतलब नहीं कोई, किसी भी कौम मजहब से।
मैं खुद को ऐसी बातों से, जरा अंजान रखता हूँ।।
अमन-औ-चैन की राहों, पर आया संग जो मेरे।
मैं ऐसी शख्सियत का, उम्रभर एहसान रखता हूँ।।
भले ही तोडती दम हो, यहाँ इंसानियत लेकिन।
बनाए फिर भी "साहिल", खुद को मैं इंसान रखता हूँ।।
***©*** साहिल मिश्र ***
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