Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आनंदमय अनुभव

 

अवसाद-ग्रस्त एकांत के क्षण ;
बिन आहट मन में करे गुंजन
विषाद या बैराग का है आह्वान
पाप या पुण्य का नहीं ज्ञान
आत्मा का निर्मोही अभिज्ञान
पश्चात्याप से भरा मन-मंथन
या अहंकार से भरा अभिमान
शुन्य की प्रतिध्वनि करता मन
तब भीतर याद आये पतितपावन
परमपूज्य मेरे खोलते है नयन
हुई हल-चल हुवा विवेक चिंतन
मेरा होना या न होना तुछ्य है प्रश्न
सत्य की अजेय गूँज जीवन-मरण
अमृतमय हो जो ले प्रभु आपकी शरण
प्रभु का मिले आशीर्वाद, धन्य हो जीवन

 

 

---सजन कुमार मुरारका

 

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