आरजू थी, मोहब्बत का पैगाम लिखेंगे ;
तन्हाई मे कैसे गुजरी रात वो दास्ताँ लिखेंगे !
ख्वाहिश से भर कर अल्फाज, इल्जाम लिखेंगे,
कसमे-वादे,प्यार-वफ़ा,शिकवे-शिकायत लिखेंगे !!
तमाम रात ख़यालों से सजी हुयी छोटी बढ़ी बातें,
दर्द से गर्क़, दहन से सुर्ख, हर अल्फाज सजा के ;
निद्राहीन आँखें ,आँखों की पुतलियों मे नींद जागे !
भटकी हुई रुहु की माफीक मुक्ती की पन्हा मागें |
लहू सा तपता सूरज निकला अम्बर मे ले उज्जाला ;
मसल दिया सारे ख्वाब,मन मे तृष्णा का अंगार जला !!
बंद कर लेते अपने होंट, मगर दिल से दर्द है निकला ;
खुदा का शुक्र है ! अभी तल्लक मेरा जनाजा न निकला |
:-सजन कुमार मुरारका
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