बचपन की.. वह अमीरी
.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. वारिश के पानी में
.. हमारे.. भी जहाज़.. चला करते थे !
बचपन की...वह बाहदुरी
.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. छत की मुंडेर पर
.. हमारे.. भी पांव.. चला करते थे !
बचपन की...वह दिलेरी
.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. टिफीन बॉक्स में
.. हमारे.. भी निवाले.. आपस में बटते थे !
बचपन की...वह बात सारी
.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. साथी के दुःख में
.. हमारे.. भी आंसू.. अपने आप निकलते थे !
सजन कुमार मुरारका
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