Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बदलाव चाहिये

 

सुबह की चाय
हाथ मे अखवार
वही खबर
लूटमार
बलात्कार
भ्रस्टाचार
पढ़ते पढ़ते
चाय ठंडाई
छाई मलाई
अंतरमन मे
अफसोष करते
सरकार को गरियाते
व्यवस्ता की दुहाई देते
अपनी सीमा बताते
और निश्चुप हो जाते
आवाज लगाई
चाय ठंडी हो गई
विवेक जैसे
धुल जम गई
मरकर ठंडा हो गया
अन्दर से
हम सिर्फ सहते
प्रतिवादी नहीं बनते
फिर आई चाय गरम
कब आयेगी शरम
व्यवस्ता हम से
व्यवस्ता से नहीं हम
कब टूटेगा भ्रम
आज का अखवार
कल होगा पुराना
खबर नहीं बदलेगी
बदलेगा पात्र और स्थान,
जब तक नहीं बदलेगा जमाना

 

:-सजन कुमार मुरारका

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