बहस चली तारों के बीच
चाँद का जीवन कितना आसान
चांदनी के संग रहना
पक्षकाल रंग-रेलीयाँ मनाना
शर्म-हया से फिर छुप जाना
मधुरता से "मामा" कहलाना
बहस चली तारों के बीच
क्या मजा ऐसे जीने में
जी के दिखलायें बीराने में
अनजाना सा लाखों में
गुमनाम सा पहचानो में
आकाश को जगमागने में
टूट जाये, दुआ दिलाने में
बहस चली तारों के बीच
नियमों में न बंधे, न चले
हर डगर, निडर होकर डोले
टिक नहीं पायें अकेले-अकेले
न जीये किसी फ़रमान के तले
क्या गिला,हम अपनी रहा भले
बहस चली तारों के बीच
अकेला चंद्रमा,और सैंकड़ो तारे
खिलते है जब आकाश परे
छाते जगमगाने बिन बिचारे
रोशन चंद्रमा, टिम-टिमाते सारे
पीड़ा पीकर भी रह जाते हैं तारे
बहस चली तारों के बीच
हर अवस्ता में फिर भी जीते
किसी डर से छुप नहीं जाते
अपने में जीते, अपने से मर जाते
खास कहलाने, पीछे-पीछे नहीं घूमते
आकाश-गंगा में गुमनाम खो जाते
:-सजन कुमार मुरारका
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