वेद-पुराण के परिभाष
कण-कण में इश्वर का वास
जीव-निर्जीव सब में निवास
फिर स्वर्ग में, या वेकुंठ में प्रवास
मैं अज्ञानी मुझे नहीं आभास
बताये मन्दिर में श्रेष्ट भक्त जन
बताये आश्रम में संत-मुनि जन
धर्म की माने सर्वत विराजते भगवान
इश्वर के लिये फिर कियों मन्दिर निर्माण ?
क्या दीन-दू:खी के प्रभु रहेंगे विराजमान ??
प्रभु के रहने के कितने उपाय
मन्दिर-आश्रम नित नये सब बनाय
जागे कौतुहल, मन में अतीव संशय
दीन-दू:खीयों का कियों नहीं होता उपाय
भगवान रहते सब में, निराश्रय को दो वसाय ?
सहजता से भगवान अपने आप वस जाय !!
सजन कुमार मुरारका
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY