सजन कुमार मुरारका
बिदाई की अब बजने को है शहनाई
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का रुदन
न कर पाऊं शायेद भांवो का बर्णन
हाथ पकढ़ जो चले तेरे नहने कदम
बाबुल की दहलीज पर याद आयंगे हरदम
तेरी पुकार को तरसेगा मेरा मन
धुप छांव तले बरसेगे नयन
याद तुम बहुत आओगी
ससुराल तुम जब चलिजाओगी
सुप्रिया सुप्रिया पुकारेगा मन
आई तुम तुलसी सी मेरे आँगन में
भैया की राखी में , मैया की आंचल में
मोती सी नयनों के सीपो में
कस्तूरी सी मृग ह्रदय में
बाबुल की हर सांसो में
बंधन के कच्चे धागों में
महक रही थी छोटी सी बगिया में
छोढ़ चली बाबुल का संसार
बसाने को आपना परिवार
चली जो तुम पिया के द्वार
अश्रु -नयनो में भी ख़ुशी है अपार
बजने को है शादी की शहनाई
बिछुढ़ने को बिदाई की घढ़ी आई
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