Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिरह-बेदना

 


तेरे अश्रु जल से भरे नयन
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे स्तब्द हुये हाथों के कंगन
टूटे हुये दिल से जैसे निकले मेरा रुदन
तेरे बिरह ब्याकुल से कथन
निस्चुप हुये शब्द जैसे निर्बाक मेरे वचन
तेरे निर्जीब से शीतल बदन
स्थिर हुये शिला जैसे सारे मेरे स्पन्दन
तेरे पायलों के रुके जो गुंजन
क्रंदन हुये मुखर जैसे ज्वालामुखी मेरा मन
तेरे पलक के निश्चल से छन
आतुर हुये हर पल जैसे बंद हो मेरे दिल की धढ़कन
तेरे मिलन के मौन से निमंत्रण
चाँद जैसे पूनम को चांदनी से मगन, जागे मेरे मे अगन


:-सजन कुमार मुरारका

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