मेरी कलम लिख रही, "बिरह" मधुमास का,
मन मुरझाया, खिला फूल जब अमलतास का,
चली जब बसंती पवन,पलाशों सा मन दहका,
गमगीन कोयल भी गाये गीत मेरे बिरह का ,
भवरें सी तान मे खुले बंध कोपल कलियों का,
धड्कन मे बजता गीत जैसे मन की हसरत का,
सासों मे बजे लय घुंघरू सा खनकते दिल का ,
मन मे घुटती आहें छेड़े राग जल-चातक का ,
फ़ागुनमे बरसा जैसे लहू-रंग मेरे अरमानो का,
कसमसाने लगा मन सर्द हवा मे ज़र्द पत्तों का,
बिरह की गर्मी से झुलस गये पंख तितलीयों का,
खोजे मन वावरा रिमझिम सा मिलन सावन का !
सजन कुमार मुरारका
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