Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बूँद बूँद ज़ाहिर अफसोष!!

 

 

गहन अघोर ….घोर सी चिन्ता ….
धधकती आग सी .. .. ….मंथित ह्रदय में उद्वेलित मन ……..!!
न सन्तोष …..न विस्वास …न धर्य ……
चंचल रहता …..हर वक्त मगन ….
तब ….अशान्त मन बस …
जागृत रहे, लेकर आस ……
होगा अन्त,होगा नया प्रभात ….?

 

पद-पद पर विनाश का डर ….
सुनता...सुनत-सुनते... छाया.......सुनापन …;
ध्वनी-तत्व ….का …प्रतिफलन..!
नज़र पत्थराए सहा नहीं जाये ……विडम्बना कष्ट की ….!!
हर बार की तरह ……सोचता कब होगी निज़ात और …
फिर कब खुशीयों की हरियाली से …मेरा मन होगा ….
हरा-भरा फूलों से महका खुशबूदार

 

सावन बरसे सर्द्दी जाए
शायद ….बसंत भी आए …..
पर …..मेरा मन मरा जाए …..
तप्ते मौसम मे सुखा सा ….
अंगार और ताम्र रंग लिए …
विरहनी का सिंगार सा ……!!!!
और जब बदले ऋतु …..
धरा पे बरसे ….
बूंद-बूंद,झर-झर सावन सा झरें पसीने ….!!!!

 

जब छाये शरद की लाली-रूपहेली ….
हेमंत की मंद-मंद हवा सी ……
अन्दर तूफान धड़-धड़ाए …..
ज्वालामुखी फटने तैयार …
क्या करूं …..
ह्रदय मे मेरे …..धक …धक …धका-धक …..
चलने लगता निनाद ……………………..

 

और ……
चिन्तन मे असंतोष की धूल ……
…जमने लगी है ………मैली -गंदी सी
जिससे अन्तर्मन की कोमल आत्मा पर ……….
बारम्बार किया कुठाराघात ………
पुनः …वह ही अविस्वास …..!
धूप मे मिटती बूँद बूँद ओस
और
सिर्फ हर बार की तरह ज़ाहिर अफसोष !!

 



सजन कुमार मुरारका

 

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