Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाँद की है क्या मजाल ?......!!!

 

जब उनकी नज़र जो इनायत हुई हम पर,
सब की निगाहों मे मेरा ही वजूद छा गया...!


महफ़िल में आज सब की नजर हम पर,
जब से उनकी निगाहों में मेरा चहेरा आ गया,


कल तक तो इस महफ़िल का मैं कोई न था,
आज हर शख्स, खुद-व-खुद अपना बना गया,


जंहा कोई परिन्दे का भी नामोनिशाँ न था,
लाखों का हुजूम चौखट पर दस्तक बजा गया !!


सब लोग पूछते मुझसे,खुदा का है वास्ता,
कोन सी चाल बाज़ी या साज़िश मैं रचा गया }|


अब चाँद मेरी महफ़िल मे सरगोशी करता,
इल्जाम है मेरे आगोश मे चाँद आ गया |


ज़ुल्म और नफ़रत का ज़हर हर कोई फैलता,
जलन से मुहब्बत या,सलीके का लहज़ा बदल गया !


हर ताल्लुकात मे अब सौदा नजर आता,
कितना लाजमी है हर शख्स-ऐ-आम पास आ गया !!


जाने-जीगर प्यार का दीदार करना चाहता,
मेरे दरवाजे पर जश्ने ईद सा माहोल्ल छा गया |


सलीक़ेमन्द लोगों का सलीक़ा समझ नहीं आता,
बदतमीज़ी है ,आसमां के चाँद को दिलकश बताया,


"उनके " हुश्न से उस चाँद को मिलना ही गैरवाजिब था,
मेरे " चाँद " से बाहार आसमां का खुद ही शरमा गया !

 

 

सजन कुमार मुरारका

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