खुद की बेरुखी पर
वह अगर एक बूंद आंसू बहाते
कसम खुदा की
हम गम का सागर पी जाते
खुद की वेवफाई पर
वह अगर एक "आह" जताते
कसम खुदा की
हम शर-शैया पर भी लेट जाते
खुद की अनदेखी पर
वह अगर एक नज़र नजराते
कसम खुदा की
हम मरते दम तक राह तकाते
खुद के जुल्मी सितम पर
वह अगर एक अफ़सोस जताते
कसम खुदा की
हम आग के दरिया में कूद जाते
मेरा जूनून नहीं , मेरा सरुर है
ना माकूल इम्तिहान, अब्बल आना है
उन्हें पाने का सवाल नहीं, अपना बनाना है
शिकायत उनसे नहीं, दर्दे-ऐ-दिल बताना है
सजन कुमार मुरारका
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