Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एहसास सारे

 

ये और कुछ नहीं फ़क़त उम्मीद के एहसास सारे
वजह बने ज़िन्दगी के लिये ख़्वाब प्यारे

 

हाथ में मेंहँदी उनके-सुर्ख लहू से लिखा फरमान
शायद हैं जीने का पैगाम, या मौत का सामान

 

ज़ख्म दर ज़ख्म फिर भी आश मन में
यह दर्द ही तो है बाकी, अब आयेगा लुफ्त जीने में

 

 

सजन कुमार मुरारका

 

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