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गांधी जी के तीन वचन अनमोल;
बुरा न सुन,बुरा न देख,बुरा न बोल,
शायद इन्सानियत हो गई अपने मे लिप्त,
बचने बचाने को बन गया गांधी भक्त ,
और उपदेश को ध्यान से रखता सशक्त |
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हर तरफ़ आवाज़ है कितनी घनघोर ,
सत्ता के गलियारे मे घूम रहे चोर ;
महंगाई की मार,हाहाकार पुरज़ोर ,
फ़रियाद सुननेवालों मे भी घुसखोर ,
मैं कंहा सुनता यह सारे के सारे शोर !!
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जितना भी हो दुराचार, भ्रस्टाचार,
सत्ता का हो दुरउपयोग, दूरव्यवहार ,
नारीयों से चाहे व्येबिचार,बलात्कार ,
बहुवलीयों की सरकार या अत्याचार,
मैं कंहा देखता हूँ,रहता निर्बिकार !!
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संविधान ने दिया जो अधिकार बेमोल;
स्वाधीन भारत मे मन खोलकर बोल,
प्रतिवाद की आवाज़ क्यों हो गई सुप्त ;
रोटी,कपड़ा और मकान का दर्द संतप्त ;
आतुरता मे बोलना बन्ध,शब्द हो गये लुप्त |
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गांधी जी के उपदेश के सब मोहरे थे बंदर !
क्या हुवा आज़ भी नेता अगर बनाते हमे बंदर |
गांधीजी ने भलाई बताने बंदर को बनाया मोहरा ,
आजके नेता चाहते अपनी भलाई, बनाते मोहरा ;
गांधी के नाम पर दुकान चलाते,झूट का सहारा |
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जीवन की ह़र बाज़ी मे आम आदमी से धोखा,
ज़ुल्म का हश्र बुरा, इतिहास का लेखा जोखा ;
बंदर नाच नचानेवालों सुनो विद्रोह दस्तक देगा,
देखो चेतना के नवउदय की झिलमिलाती रेखा !
बोलो तुम्हारे ज़ुल्म का हिसाब और कोन देगा ?!
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सजन कुमार मुरारका
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