जब विरह- स्मृत-कर
श्रावन का हर दिन,
विरही के शोक से
सघन संगीत में पुंजीभूत
व्याकुलता में छिपा दर्द
अवरुद्ध अश्रुजल सिक्त कर
ताम्ब्र-कृष्ण अम्बर पर,
न जाने, कितने झंझावत
विद्युत--उत्सव से करबद्ध
हवा का तांडव दिखा कर
अंतरगूढ़-क्रन्दन से भर
प्रतिध्वनित अश्रुवाष्पयुक्त
अविरल रूप से झर कर
नई जल-धारा बरसाकर
है मेघदूत
स्निग्ध, शीतल, स्नेहयुक्त
सागर में मिलन प्रतिबद्ध
विरह और मिलन के क्षण
एकाकार और समर्पण पूर्ण कर
देश-देशांतर में खोज कर
हर दूर प्रवासी विरही में
मिलन का सन्देश अभीसिक्त
तुम विरह से निर्मुक्त
नया जीवन संचरित कर
मेघ तुम धरा में बरस के समाते हो
तब-तुम "मेघ दूत" कहलाते हो
:-सजन कुमार मुरारका
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