मुझे शक की निगाहों से ना देखो,मैंने पीना छोड़ दिया,
यों ही आँखें लाल हो गई ज़ालिम, तुम ने जो ज़ख्म दिया ,
मेरी गली आना,देखना ,तेरे नशे ने मुझे बे-होश कर दिया,
जबसे ज़ुद्दा हुई तुम,हमने तो मयखाने जाना छोड़ दिया;
कितने पियें ज़ाम,ह़र नशा,तेरी यादों से कफुर हो लिया |
मेरा रुख मोड़ने की कुरवत मे,तुने मेरा साथ छोड़ दिया,
रहने लगी ख़फा-ख़फा जब से,मयखाना ही छोड़ दिया,
लबों को सिल के भी, साकी से नज़रें मिलाना छोड़ दिया.
मोहब्बतकी आयतों को सनम,ख़ुदा-ऐ पाक का दर्ज़ा दिया |
फिर भी नजरें न हुई इनायत,हमने ग़म से दामन जोड़ लिया,
तेरी आँखों से नफ़रत का उलहाना,हर बाज़ी को डुबो दिया
शराब की थी नहीं इतनी औकात,तुम ने ही मदहोश कर दिया,
जब से हारी तेरे प्यार की बाज़ी,दिल ने जीना मुहाल कर दिया,
प्यार की तपिश का गुमान ,बेवफाई ने हाल बे-हाल कर दिया |
इतने पर भी जब दिखी बेरुखी,हमने प्यार मे इठलाना छोड़ दिया,
क़सम ख़ुदा की हम पीने के लिये अब मयखाने जाना छोड़ दिया,
हम तो चले जाते यह सोचकर, कंही,तुमने वहां हमे तलाश किया,
हम पीते नहीं जानम,वक़्त तुम्हारे इन्तज़ार का यों हल्का किया |
नाशा छोडा,तुम छोड़ गई ,सोचते तुम लोटोगी,जो नशा लोटा दिया,
मैं तेरे हुश्न के गरूर से नशा किया,एतराज़ न जाने तूने क्यों किया,
तुझ पर एतवार करके, ग़म का, ज़िन्दगी भर दिल पर ज़ख्म लिया,
ग़म ग़लत करने अगर अब हम पी लेते हैं तो, क्या ग़लत किया ?!!!
*सजन कुमार मुरारका *
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