Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इजहार

 

तुम्हारी नजरें खोज नहीं पाई मेरा प्यार
शायद तुम्हे इस पर नहीं था एतवार
मुंह छिपाये पास से निकल जाती हो हरबार
तुम खुश रहो, है दिल की पुकार
मैं रहूँ या न रहूँ, मिले या न मिले तेरा प्यार
यादों में आऊं या न आऊं, नहीं सरोकार
दुआं फिर भी निकले दिल से बार-बार
जीबन के अंतिम चरण तक है यही पुकार
तुम्हारी खुशी में, मेरी खुशी है बेसुमार
मेरी चाहत शायद तुन्हें लगी हो बेकार
कभी-कभी मेरे मन में आये बिचार
तुम से दिल लगाना ही था निराधार
लेकिन स्वप्न में भी भूलना था अस्वीकार
दिन-रात सिर्फ डोले मन में तेरे बिचार
मेरा अस्तित्व तुम ही में है एकाकार
तुम्हारे ख्यालों से जी लेते हैं हरबार
अब जीने-मरने पर मेरा नहीं अधिकार
न जाने कब दिल छोढ़ आया तेरे द्वार
और मैं ने किया तुम्हे बेइन्तहा प्यार
जानेमन प्यार में नहीं होती तकरार
मजबूर दिल करे तुम्हे प्यार ही प्यार

;-सजन कुमार मुरारका

 

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