मानसिक अवसाद-अत्याचार:
झेले शारीरिक कस्ट विकार,
किसी से हैवानों का बलात्कार:
विकृत यौनेच्छा का आधार :
शारीरिक कस्ट या विकार सही,
घिनौना जुर्म:पीड़िता जूझ रही !
कहा जाता है"इज़्ज़त लुट गई"!?
झेलनेवाली की इज़्ज़त कैसे गई ?
कर्म से होती इज़्ज़त;शरीर से नहीं,
इज़्ज़त-प्रतिष्ठा जन्म से भी नहीं ;
समाज केवल स्त्रियों के संदर्भ में,
शरीर को जोड़ता उनकी इज़्ज़त मे;
हाय मचाता"लुटना”जैसे जुमलों से,
भूल गंभीर चोट, शरीर और मन पे,
शब्द उस दर्द को बयान नहीं करते-
"लूट ली"!"मुंह दिखाने लायक नहीं"!
"कालिख पूत गई!पाक-दामन नहीं"!
कैसे कैसे जुमलों से सही इज़्ज़त लूटते,
दुर्गति शरीर की, फ़िर- लांछना हम देते;
मन की इस व्यथित दशा करने व्यक्त-
महसूस करें शरीर की पीड़ा नहीं इज़्ज़त|
स्त्री की तमाम अस्मिता पुरुष शासित;!
स्त्री देह-अंगो को समझे “पूंजी”-इज़्ज़त|
अत्याचार-बलात्कार स्त्री का अपमान;
शारीरिक-मानसिक कष्ट मृत्यु समान|
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे हम हरते मान,
स्त्री को धन समझते, या भोग-सामान|
असभ्य और राक्षसी-प्रवृत्ति की ही बात,
समझ नहीं आता है कोई किसी के साथ-
गलत करे,पीड़ित फ़िर कैसे दोषी हो जाय?
जबरन देह-संबंध से स्त्री की “इज़्ज़त” जाय!
प्रश्न है-क्या स्त्री की इज़्ज़त केवल शरीर होता;
पढ़ाई-लिखाई,कार्य,नाम-यश,आचार-योग्यता?
क्या कोई मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुष का,
अत्याचार! तमाम आयामों को पल में नष्ट करता?
कैसी घिनौनी और षडयंत्रपूर्ण समाज अवधारणा;
आधारहीन विश्वास,पीड़ा बढ़ाए पीड़ित कि कई गुणा,
ज़बरन शारीरिक संबंध से इज़्ज़त लुट जाना-?
यह कैसा प्रपंच है समाज का अर्थहीन बेमाना ?!
स्त्रीयों को बराबरी का दर्जा तब ही सही होगा !
जब प्राकृतिक और तार्किक सत्य स्वीकार होगा !|!
सजन कुमार मुरारका
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