Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इश्क छुपता नहीं !

 

प्रिये! तुम्हारे निभाने की यह रीत है क्या ?
प्यार किया, गुनाह नहीं, फिर डर है क्या ?

 

वेरुखी की फ़ितरत मन मे है अगर जुदा ;
जानम! कहते, इश्क कभी कंहा है छुपता !

 

आपने जनाव ! यह बात छिपा रखी थी,
लाख छिपाये, चहेरे पर बात आ रही थी;

 

चाहे जो यत्न करे, सच्चाई तो छुपती नहीं ;
छुपाओ चाहे गुलाब को,खुश्बू छुपती नहीं ।

 

इन्कार करने की इतनी सी वज़ह है अगर,
जताना न था तो कोइ शिकवा नहीं मगर,

 

यह खबर तो सरेआम सबको खबर हो गई,
आप इतने भी नादान नहीं, बेखबर रह गई;

 

यह नजदीकीयां, नजदीक है दिल के इतनी,
दूरियाँ चाहे बनाना, दूरियाँ होती कंहा अपनी|

 



सजन कुमार मुरारका

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