Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ज़िन्दगी की श्याम है

 

ज़िन्दगी की श्याम है
डूबते सूरज जैसे
भोर की सुनहरी लाली
दोपहर का तेज प्रकाश
एक-एक कर विदा हो गए
छा रही कालिमा धीरे धीरे
बंद होने को है जीबन-शाला
नाकामी और दुःख के जाम
पीने को मजबूर हर प्याला
मजबूर रहता मन हर पल
दुःख है की झलक जाते
गम-ऐ-दर्द और नशा
टूटे हुवे प्यालों में हाला
पीने को बेबस आता मधुशाला
सहा था कई… कई बार
जो अब हिस्सा है जीने के
हर बात से वाकिफ़ मन ने
कितनी ही बार सहलाया
वही टूटे जाम अब आंसुओं से भरे
समय की धर में उपेक्षित-सा पढ़े
अब कोई रास्ता शेस नहीं
हर तरफ़ केवल ख़ामोशी
उम्मीदों की रोशनी भी नहीं
अब हर तरफ़ अंधेरा लाचारी
बस जाने की तैयारी है
ग़मों को सहज कर रखते-रखते
ज़िन्दगी की श्याम हो गई

 

 

:-सजन कुमार मुरारका

 

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