Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जुदाई

 

हर रात के बाद रात आई
जख्म पर छिढ़का किसी ने नमक
कैसे सहें उनकी बेरुखाई
सुबह का बन्दा हुआ सफ़र
दर्द भरी यादों की चुभन
नादान दिल इन से बेखबर
हसरत भरी तमनाएँ
स्वप्ने में आरजू सजाएँ
आशाओं के उगाये महताब
सारी-सारी रात देंखें तेरा ख्वाब
थोढ़ी सी मिलन की आश
मन में जगाये जीने की प्यास
सह नहीं सकते तुम्हारी जुदाई
हर पल, हर लम्हा तेरी याद आई

 

सजन कुमार मुरारका

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ