प्रेम में विरह कष्टदायक अति
बयान असंभव करो यत्न यदि
सच्चे प्रेम में मगन जब मति
दुष्कर है विरह की रुके गति
विरह का दुख,प्रेम की परछाई
नापने का पैमाना इसकी गहराई
प्रेम के तत्व और व्यापकताई
सत्यता,असीम आनंद की सच्चाई
अनुभव ही नहीं किया जिसने
केवल छिछला प्रेम लगे निभाने
विरह के दुख से सुरक्षित रहने
वह उस प्रेम की मर्यादा न जाने
विरह का दुख दारुण असहाय
पुनर्मिलन की आस ही प्राण बचाय
मृत्यु ही जब लगे दुख का उपाय
मिलन की सोच ही राह दिखाय
विरह समयाविधि जहाँ निश्चित
दुख की तीव्रता फिर भी नहीं स्तिमित
कि दुख में मिलन की आस पल्लबित
हल्की-सी मिठास, मन होता हर्षित
कह गये संत तुलसी दास बिबेका
रामचरितमानस- सुंदरकांड का लेखा
विरह-जनित प्रेम अति बियोगा
खींचीं संत ने बहुत ही सुंदर रेखा
कहेउ राम बियोग तव सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता।।
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू।।
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा।।
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।।
कहेहू तें कछु दुख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई।।
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मनु मोरा।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं।।
प्रेम हो ऐसा, प्रेमी समाये मन में
तन की दूरी भी न आये बीच में
राम का संदेश लेकर हनुमान
सीता जी को सुनाया यह बयान
“सीता, जबसे मैं तुमसे बिछड़ा
मेरे लिए तो हर चीज़ विपरीता
पेड़ों पर आए नए कोमल पत्ते
मुझे अग्नि की जिव्हाओं लगते
रातें कालरात्री की तरह भयानक
चंद्रमा सूर्य सम तन को अचानक
जलाने वाली ऊष्मा देने लगा जैसे
कमल पुष्पों के शैया बदलगई ऐसे
शैया नहीं तीरों का बिछौना लगते
वर्षा के मेघ उबलता तेल बरसाते
मित्रवत जो थे ,वे पीड़ा देने लगे
शीतम मंद और सुगंधित झोंके
नाग की फुंकार सी अगन जलाये
दुख किसी से यह कह नहीं पायें
कहते दुख किसी से कह दिया जाये
तो दुख कुछ कम हो जाये
पर कोई भी नहीं जो इसे समझे
यह मन की लगन मन ही बुझे
मेरे प्रेम का सत्य मेरा मन जानता
और मेरा मन तुम्हारे ही पास रहता
:-सजन कुमार मुरारका
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