Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कैसे ग़ज़ल होती है

 

प्यार के जख्म से वेवाफाई की हर अदा गज़ल होती है ;
जख्म वह नासूर से टिसते तो दर्द की गज़ल होती है ।

 

अनकहे जज्ब़ात के हर लफ्जों से प्यार की गज़ल होती है;
जज्ब़ात मे बह कर एतवार से माशुकी की गज़ल होती है ।

 

जब ख़ुद को भूल जाये कोई तब दिल की गज़ल होती है ;
हर लम्हा याद आये जब कोई तो चाहत की गज़ल होती है।

 

दिल के बसे ख़ामोश समन्दर से जज्ब़ात की गज़ल होती है;
जज्ब़ात जो अरमान बन दिल से उगते तब भी गज़ल होती है।

 

बेवजह कोई बैठे-बिठाये लब पे याद आये तो गज़ल होती है;
और याद सताती हो पर दूर तलक ना हो तो गज़ल होती है।

 

छोड़ चला गया हो पर दिल से गये नहीं तो गज़ल होती है;
गौर से सुनने से दिल मे हरदम गुनगुनाते तो गज़ल होती है।

 

आँखों से जो टपकते अश्क तो बूंद-बूंद से गज़ल होती है;
होंटो पर चमचमाती हंसी सितारों से रोशन गज़ल होती है।

 

उझडी किस्मत से उम्मीद की राह दिखें तो गज़ल होती है;
नाउम्मीद की तड़प किस्मत की बददुआ की गज़ल होती है।

 

हर पैमाने पे ज़िन्दगी बोझ लगे तो मायुसी की गज़ल होती है ;
ज़िन्दगी अलग से ख़ुशनुमा लगे तो ज़िन्दगी की गज़ल होती है।

 

जाने आगे क्या होगा सोचकर दिल की धड़कन गज़ल होती है;
हर पल को जो जीये-मरे इस तरह से जीयें तो गज़ल होती है।



सजन कुमार मुरारका

 

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