पुत्र जनम शुभ, कन्या जनम कष्टकारी,
करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी
न जानत, जननी रूप कन्या की छबी न्यारी
ध्यान दीजे, संतान सकल, सम प्रेम अधिकारी
शीतल वचन, कोमल मन, स्नेह सुख परिभाषी
मंगल मूरत, नित सेवत, सत चित, प्रकृती से दासी
निसदिन बोलत, प्रेम सहित डोलत,धरत सुखराशी
कबंहूँ नहीं मांगत, न कबंहूँ कठोर संकल्प फरमासी
करुनामय,रसमय, लछमी रूपा आनंद सुधा बरसाती
कोयल सी कुंजन करत, तितली सी मंडराती
सृष्टि की अधिकारी, सेवक मान, जग में जी पाती
कल्पतरु सी दाता,अपने दुःख अपने में समाती
कुंठित,भयभीत, लज्जित सा जीवन परे
मात-पिता,अग्रज-अनुज सब अनुशासित करे
जान कष्ट, शांत भाव-सदा ही धीरज धरे
प्रतिपालक जननी तू जब संतान रूप धरे
विचित्र रचना, भ्रमित माया जगने रच राखी
पराया धन ठहराये, जो धन दुःख में सहभागी
कन्या-दान अति महान कहे सब अनुरागी
फिर भी मांगे धन-दौलत, कन्या बिचारी अभागी
:-सजन कुमार मुरारका
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