कभी हंसाती, कभी रुलाती, कितने गुल खिलती हैं
अज़ब दास्ताँ है भाग्य की ,फिर भी इसी की चाहत हैं
नजराना पाप-पुण्य का , मुक़द्दर सबका होता है ;
कहते तकदीर खुली जिसकी , वही सिकंदर होता है ,
तदबीर करें कियों कोई ? भाग्य पर जब चलता है
तकदीर की चले जो तदबीर क्या काम करता है .
सन्देशा मिला "गीता"से , फल की आशा ब्यर्थ है ;
कर्म को दिल से लगाकर, विधि का निर्णय पाता है
मैं चकित ,मेरे कर्म के पश्चयात-क्या यह तय होता है
अगर आगे से तय-सुदा, तो कर्म से उम्मीद क्या है ,
यह पहेली समझ ना आई, मन मेरा सवाल करता है .
कर्म प्रधान या भाग्य महान, कैसे इसका निदान होता है
कोई जनम से भोगे सुख, करम जरुरत कंहा होता है
कोई करम के बाद सोये भूखा-नंगा, भाग्य कंहा होता है
कैसे भी हो ये कहना मुश्किल है , तदबीर से होता है .
कैसे भी हो ये कहना मुश्किल है, तकदीर से होता है
मिले ग़र तकदीर -तदवीर से, नतीजा आसन होता है
अगर मिल गई तदवीर-तकदीर से काम तमाम होता है
;-सजन कुमार मुरारका
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