लिखना है, अपने आप में
अन्दर मन की खिड़की से
झांके दिल के हर कोने में
भीतरी किवाड़ खोलने से
रुके शब्दों को बाहार लाने में
भीतर की ज्वालामुखी से
बिखर जाते सुलगते लावा में
फुट पढ़ते है दर्द शोले से
दबा देते हैं पीढ़ा राखों में
चन्द शब्द के बयानों से
रोशनी कर देते अन्धेरें मे
लिखना है, बहती पवन से
बहके हर शब्द नशे में
मस्त-मस्त चाहत से
किसी के इंतजार में
बीते समय, रुके जो पल से
हंसी, मजाक,ठिठोली मे
प्रीत की अमृत ज्वाला से
लिखना है, उगा कुछ अन्दर में
शब्द फैले पेड़ की टहनी से
समा जाये हर घटनाओं में
दिखे जिन्दा-लाश इन्सानो से
लायें आक्रोश जन- सैलाब में
पानी जैसे सूखे रेगिस्तान से
लिखना है, नई सोच में
आनेवाले की स्वागत से
जानेवाले की विदाई में
हर रिश्तों की पहचान से
लिखना है, बिछुढ़ना या विरह से
मिलना,हर घड़ी इन्तज़ार से
मधु मास, निभे उदासी से
जब बौर लगे आमों के पेड़ में
महके जब मन हरसिंगार से
फागुनी पुरबइयां के चलने में
अगन लगे जब सावन के धार से
लिखना है, अंतहीन बातें शुरुआत में
:-सजन कुमार मुरारका
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