मेरे अपने लोग मुझे कहते पागल,
सोचता था व्यवस्था को दूंगा बदल !
इतनी हिम्मत भी नहीं करूँ दंगल,
बदलाव के लिये धन भी नहीं प्रबल,
पर मन में खिलता सोच का कमल |
विद्रोह की ज्वाला करता उज्जवल,
कोई ना कोई होगा, देगा इसे अमल !
सुनने वाले सब कहते मुझे पागल !!
चिंगारि सुलग रही है,चाहिये जंगल,
प्रतिवादी आग फैले,जैसे कोई दावानल,
खोजता हूँ मिले कोई "महादेव",पिये हलाहल,
पुकार सुन कोई आयेगा,होगी न पुकार निष्फल,
फिर भी कोई आये, न आये, चल अकेला चल |
मिलेगा चलने का फल, यात्रा नहीं होगी विफल !!!
चाहे लोग यों ही कहते रहें मुझे पागल |
:-सजन कुमार मुरारका
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