मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं
कैसे, कियों, किसलिये,सोचकर में निरूत्तर हूं
माता-पिता से प्रेम है या नहीं,याद कर लेता हूँ
मेरे भाई-बहन,रिश्तेदार है जो-भी
मैं सब से, जैसे-तैसे ,निभाने को हंस-बोल लेता हूँ
निरन्तर न सही, समझाता हूँ उन्हें प्रेम करता हूँ
पत्नी की बात अलग, न्यारी भी
उनके आँखों से पानी बरसता है जभी
खुश करने को योगी जैसे मौन सुनता हूँ
उन्हें बिश्वास दिला-देता अगाद प्रेम करता हूँ
जब प्रकृति के नियम परे ललचाये मन भी
आप-बीती भूलकर भी ,प्रेम करने लगता हूं
कोयल की तान, सुन्दर पक्षी मोर की
कल्पना शुरु होती है हर रूप विचार की
कल्पना के है जो आधार, उन आधार से
निशदिन बिलखता हूं, ,पर फिर भी प्रेम करता हूँ
मैं तो प्रेमी नहीं, पर मजबूरन प्रेम जरुर करता हूं
पुत्र-कन्या की चर्चा भी नहीं उभरी जो अभी
यार-दोस्तों की बात आइ नहीं, शेष है कुछ और भी
मैं क्या लिखूं ,पास न होने का भी मलाल करता हूँ
चुप भी नहीं रह पाता, बे-इन्तिहा प्रेम करता हूँ
आदतें, मजबूरी, ये सब तरह- तरह के शौख भी
चाहकर छुटते नहीं, मैं प्रेम से डोर पकड़ा हुवा हूँ
लिखें जब जल-जला या गजल या कविता करता हूँ
मैं प्रेमी नहीं ,पर प्रेम जरुर करता हूं
:-सजन कुमार मुरारका
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