खोखली ही चाहे उल्फतें, कुछ मगजमारी कीजिये;
इक नज़्म "मोहब्बत" की गम मिटाने को कीजिये;
दर्दे-ए-बयाँ हक़ीकत खुल कर मुँह जबानी कीजिये;
सोचिये कुछ,भरिये आहेँ,प्यारी-प्यारी बात कीजिये;
मसला ज़ज़्बात का हल-कोशीश-ए-अंज़ाम कीजिये;
पत्थरों के शहर में महफूज़ रखना,इंतज़ाम कीजिये;
कांच से ज़ज़्बात,हिफ़ाज़त पत्थरों मे,जज़्बा चाहिये;
खेले ज़ज़्बात से,मुस्करा के,खौफ़ की बजह सोचिये ;
वेबजह सही कुछ मेहरबानी ग़ुरबत को मिटाने कीजिये|
सजन कुमार मुरारका
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