मेरा देश
छब्बीस जनवरी,
पन्द्रह अगस्त,
खादी का कुर्ता और टोपी,
भारत का झंडा फहराके गाते,
बन्दे मातरम और राष्ट्र-गान |
बस देश बन गया महान |!!
देश मेरा,
देश की सम्पती मेरी,
पाना है मुझे सारे अधिकार ,
संविधान से जन्म-सिद्ध,
लोकतंत्र की पहचान |
काहे होते हैं बेकार मे परेशान,
भारत है गणतंत्र मे महान
देश के लिये
सीमा पर जो देतें बलिदान,
या शहीदों के परिवार की कुर्बानी,
और अन्दर की व्यवस्ता ,
रक्ष्या करते धन-इज्जत-इमान |
हम कितना देते मान-सन्मान ?
फिर भी मेरा देश महान !!
देश-प्रेम
मुझ मे कूट-कूटकर भरा,
हर सुबिधा पाने को तत्पर,
"माँ" से जैसे संतान पाता |
और माँ की देख-भाल ?
दूसरा-वाला बेटा करेगा ध्यान !
देश मेरा इसलिये तो बना महान !!
देश-प्रेम का सवाल ?
कभी गहराई से सोच न पाये ,
वैसे पाने के लिये हर मुझ जैसे,
शख्स मे अगाद होता, और-
जब कुछ देने-करने की जरुरत हो,
काफी बहाने,उलझने और -
अपने-आप निकल आते भाषण !
हमारा देश है, इसे बनाना है महान !!
देश के प्रति मेरा प्रेम
उस प्रेमी के तरह है जो नहीं जानता
प्रेम क्या है और कैसे किया जाता ?
वह प्रेम जताता, प्रेमी कहलाने, !
"नहीं तो दोस्त-यारों की महफ़िल मे,
इज्जत को बट्टा लग जायेगा, इसलिये,
चाहे-अनचाहे निभाता यह दर्शन-
मेरा है देश और यह देश है महान !!!
:-सजन कुमार मुरारका
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