मैं बिसमताओं से चिन्तित
आवाज़ करता हूँ बुलन्द
सोच से हैरान-परेशान
वातानुकूलित कमरे में बन्द
सवाल जब मेरे पे आता
"मैं" खुद को "हम" में मिलाता
व्यवस्था को गरियाता
ऊँची सोच का भाव जगाता
मैं सदा हम में रहता
फिर भी अलग-थलग हो जाता
हर सुबिधाओं पर
गिद्ध की नजर से मडराता
फटे हाल अवस्था पर
सहमर्मिता जताता
स्वार्थ से अन्धा
मगर-मछ के आंसू बहता
मैं बिसमताओं से चिन्तित
समता की दुहाई हरदम गाता
वातानुकूलित कमरे में
साम्यवाद की कविता बनाता
सजन कुमार मुरारका
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY