तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई...।
हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा पुष्पित हिल्लोरित प्राण
प्रसन्नता की स्रोत बही शीतल मलय प्रमाण
तुम जब आतुरित मन से लज्जा दिखाई.........।
मेरी सोच का अबरुद्ध द्वार खोलकर
झुकी मदभरी पलकें, निहारती धीरे से छीप-छिपकर
खड़ी हो एकांत, अपने नयन-सीपी में सागर भर
लाई हो अधर प्याले में मधु अबलम्बन लेकर
तुमने जब प्रिया मिलन की आश लगाई................।
मिलन आतुर खड़ी जैसे "नाइका" मूर्तिमान
उच्छ्वासित श्वासों में बिखरे ,उद्वेलित प्राण
शीतल मलय सम शिहरित मधुर स्पर्श सुजान
समर्पण का सन्देश प्रवाहित करता मौन आह्वान
तुम अब स्पन्दन बन, मेरे ह्रदय में समाई
सजन कुमार मुरारका
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY