Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मेरी आप -बीती

 

गुस्से मे लाल,
टमाटर जैसे गाल;
पत्नी बोली झुंझलाकर,
शर्म नहीं आती,
रात-रात ज़ागकर,
क्या-कया उठ-पटांग-
लिखते हो ?
कोई पडता भी नहीं!
खुद लिख,खुद खुश,
क्यों घरवालों को;
परेशान करते हो ?
इतना वक़्त,
इतनी लगन,
और काम मे देते ;
तो,दो पैसे घर मे आते!
कम से कम,
हम इज्जत से जीते।
जीना दुर्भर हो गया,
आस-पड़ोस की ;
औरतें जब करे सवाल!
हो जाते कान लाल।
कहती "तम्हारे"
"यह" क्या करते,
शर्म से गड़ जाती ।
सकुचाते कहती,
"कविता" करते !!
फिर भी वे दोहराती,
काम की बात बताओ?
कौशीश कर हार जाती ;
समझा नहीं पाती ।
तुम क्या काम करते हो ?
टिप्पणी मे हाय,
यों सुनने को पाये,
"बेकार" है !
"बीमार " निठ्ला"!!
काम का न काज़ का,
सो सेर अनाज़ का !!!
राम दुहाई ;
हम गहरी सोच मे,
क्या करे, कया ना करे!
इसी उधेड़वन मे,
लिख डाला ,
संदेश उनका ।
कहते हैं लोग,
हर महान पुरुष के,
पीछे होती कोई नारी !
हम पर पत्नी का ;
साया है भारी ।
लाज़ बचाना है दुस्वारी ,
मुस्किल हुवा ;
तय करना !
पत्नी प्यारी या,
कविता मेरी ।

 

 

सजन कुमार मुरारका

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ