उनसे क्या मिले, कि खुद से फ़ासले बढ़ गए;
जितना वह क़रीब आये, हम वज़ूद खो गए ;
हर वक्त मन ने सोचा कि दिल कि कुछ कहें-
उनकी आवज़ पे , जुवां पर ताले लगते गए ;
नज़रें मिली, तो , बेख़ुदी मे नज़रें लगाए रहे ,
उनके साये मे गिरफ़्त, खुद से अजनबी हुए;
लब्ज़ों की नज़ाकत मे धागे सा उलझते गए ;
अपने दायरों से ज़ुदा उन मे सिमटते गए,
आँख होते हुए भी अन्धे जुनून मे मिट गए;
चाहत के गहर समन्दर मे डूबते चले गए ;
अब मेरे चहरे पे उनकी तस्वीर निगह आए,
आइना भी शर्मसार है, मेरे तस्वुर मिट गए;
आइना क्या देखे,निगाहों मे वह ही नज़र आए!
मन मे एहसास परिन्दों सा, चहकने लग जाए,
मिलने की नज़ाकत दिल मे शिहरण सी जगाए,
वह्कने लगे कदम, फ़क़त उनके गली दौड़ लगाए;
भटके ख़यालात,यादों के फ़सादों से वीरान हो जाए!
महकते फूलों मे उनके बदन की खुश्बू ड़ूडंने मन चाए,
मोहब्बत अब मोहब्बत नही, जीने का मंजर बन जाए !!
सजन कुमार मुरारका
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